Operator v/s Retail trader in share market:
मित्र,
यह कहना पूर्णतया गलत है कि ऑपरेटर्स रिटेल ट्रेडर को लूटते हैं। क्योंकि वास्तव में रिटेल ट्रेडर अपने ट्रेड मनोविज्ञान के कारण लुटवाते हैं।
इसकी दो वजह है।
1) डर
2) लालच
इसी दो भावनात्मकता के कारण रिटेल ट्रेडर पैसे लुटा कर आ जाते हैं।
चलिये एक छोटा सा उदाहरण देखते हैं।
मान लीजिये रिटेल ट्रेडर ने analyze किया कि XYZ स्टॉक का भाव 700 से 710 तक जाएगा। ऐसे में अभी खरीद लेते हैं और यदि यह 710 तक जाने की संभावना है तो 708 पर हम अपनी प्रॉफिट बुक कर लेंगे।
चलिये यहां तक ठीक है।
असली गेम खरीदने के बाद शुरू होता है।
प्राइस जैसे ही बढ़कर 700 से 703 जाएगा। रिटेल ट्रेडर यह सोच कर एग्जिट कर लेते हैं कि शायद जो 3 रुपये की प्रॉफिट मिल रहा है वो भी न मिले।
आप यकीन नहीं करेंगे कि 70 फीसदी रिटेल ट्रेडर इस मूल्य तक बाहर हो जाते हैं। जो बचे खुचे ट्रेडर हैं वो इससे 1-2 रुपये ऊपर जाते ही बुक कर लेते हैं।
गौर करने की बात है कि जब बाजार हमारे फेवर में मूव कर रहा है तो हम मैक्सिमम 5 रुपये कि प्रॉफिट बुक कर रहे हैं।
वहीं यदि मूवमेंट अपोजिट जाते वक्त 90 फीसदी रिटेल ट्रेडर पोजीशन से यह सोचकर बाहर नहीं होते हैं कि शायद अब प्राइस ऊपर आ जायेगा।
अब अपोजिट डायरेक्शन मूव में ज्यादेतर ट्रेडर निम्नलिखित चीजें करते हैं।
जैसे ही मूल्य गिरकर 695 आएगा तो ट्रेडर सोचते हैं कि अभी 5 रुपये ही गिरा है। यहां से वापिस आ जायेगा।
फिर थोड़ी देर में प्राइस 695 से गिरकर 690 आ गया।
अभी भी बेचने की जगह कुछ यह सोचेंगे कि प्राइस बढ़कर ऊपर आ जायेगा। और जो थोड़ा कम कॉन्फिडेंस में होते हैं वो और क्वांटिटी खरीदते हैं। ताकि औसत मूल्य कम हो जाएगा।
ऐसे करते करते या तो वह 10 रुपये नुकसान में बाहर हो जाते हैं या फिर बने ही रहते हैं।
अब एक बात बताएं कि जो व्यक्ति प्रॉफिट 3-5 रुपये का ले और नुकसान 10 का ..वो भी अपने व्यक्तिगत भावनाओ के कारण तो फिर इसे लुटवाना बोलेंगे।
उम्मीद है पोस्ट आपके लिए उपयोगी होगा।
धन्यवाद
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