इसे भावनाएं कहें या फिर साइकोलॉजीकल साईकल..शब्द दोनो ही सही है।
बढ़ते या घटते बाजार दोनो ही समय यह साईकल कुछ इस प्रकार का रहता है।
"पहले उम्मीद, फिर थोड़ी खुशी, फिर उन्माद, बेचैनी, दिख रही स्थिति को स्वीकार न कर पाने की सोच, डर, निराशा, घबराहट, पस्तहाली, उम्मीद, राहत और फिर उसी उम्मीद की वापसी।"
शेयर बाजार में भावनाओ के उतार चढ़ाव का यह परफेक्ट साईकल है। जिससे अमूनन प्रत्येक नए ट्रेडर/निवेशक गुजरते ही हैं। लेकिन यह समय के साथ बढ़ते अनुभव के आधार पर स्वतः दूर हो जाता है।
इसे दूर करने का और कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
ठीक वैसे ही जैसे आपने किसी भी काम को पहली बार शुरू किया होगा तो बहुत सारे भावनात्मक उठापटक दिमाग मे चल रहे होंगे लेकिन वहीं अभी उसी काम मे आप कम्फर्ट जोन में आ चुके होंगे।
होता ये है कि जब हम पहली बार किसी चीज को बिना जानकारी के ट्राई कड़ते हैं तो आगे आनेवाली मूव हमें जल्दी भयभीत कर देता है। हम आगे आनेवाले मूव से अनजान होते हैं और जब अनजान होते हैं तो उसकी तैयारी भी नहीं करके रखते हैं। जो भावनाओ के उठापटक के लिए काफी होता है।
ऐसे में बेहतर ऑप्शन यह है कि आप चीजो को पहले सीखें, फिर समझने का प्रयास करें, फिर उसे बैकटेस्ट करके आजमाएं और फिर आगे बढ़े।
ऐसा करने से आप कई अनचाहे मूव से परिचित हो जाएंगे। इसके अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है।
उम्मीद है पोस्ट आपके लिए उपयोगी होगा
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