एक ज्ञानवर्धक कहानी सुनाते हैं।
एक नेता था। उसके बेटे ने बहुत जिद किया कि वो उसे राजनीति सीखा दें।
उसके पापा हमेशा यह कहकर मना कर देते थे कि अभी तुम्हारा उम्र न हुआ है। जब होगा तब खुद समझ जाओगे।
लेकिन उसका बेटा न माना। जिद्द करते रहा।
उसके पिता बोले कि ठीक है इस सप्ताह के से ही तुम्हे सिखाना शुरू करेंगे। वह खुश हो गया।
फिर शाम में उसे छत पर ले गए। और बोले कि मैं नीचे जाता हूँ तो कूदना मैं तुम्हें पकड़ लूंगा।
अब बेटा को भला पापा पर भरोसा क्यों न हो। जैसे ही उसके पापा नीचे गए कि वह जम्प लगा दिया। उसके पापा ने उसे बचाने का प्रयास नहीं किया।
उसे अच्छी चोट आया। वह उठा,सम्भला और पापा से पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया?
उसके पिता का उत्तर था कि " बेटा राजनीति का पहला सीख है कि अपने बाप पर भी भरोसा न करो।" आप इन बातों को शब्दशः लेने की जगह भावार्थ को समझने का प्रयास करें।
किसीने कहा और हमने कर लिया तो सही और गलती दोनो का जिम्मेदार हम खुद हैं।
अगर मैं आपसे कहूँ की कुएं में कूद जाओ तो क्या आप कूद जाएंगे?
नहीं न..
अपने स्वविवेक का इस्तेमाल करेंगे।
अपनी क्षमता और स्किल पर गौर करेंगे।
कुएं कि गहराई के रिस्क को समझेंगे।
उस रिस्क के सापेक्ष बनने वाले रिवॉर्ड पर गौर करेंगे।
और इन सारी चीजों के चिंतन के बाद निर्णय लेंगे। लेकिन अगर किसी के कहने पर सीधे कूद जाते हैं तो ये आपकी मूर्खता मात्र रहेगा।
किसने क्या कहा, किस सन्दर्भ में कहा, उस समय स्थिति क्या था, वैसी ही स्थिति भविष्य में बने रहने की संभावना कितना है। इन सभी फैक्टर्स पर विश्लेषण और चिंतन हमें स्वयं करना चहिये।
उम्मीद है आपको समुचित उत्तर मिला होगा।
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